देवीपुरम राज्य के देवता की कहानी क्या है ?
देवीपुरम राज्य का एक राजा था विश्वनाथ उसके पास बहुत धन दौलत संपत्ति थी सोना चांदी से उसके महल भरे हुए थे पास ही के राज्य की राजकुमारी से उसकी शादी भी हो रखी थी उसके दो बेटे थे।
देवीपुरम राज्य बड़ा खुशहाल राज्य था किसी को कोई दुख तकलीफ नहीं थी पूरे राज्य में कानून व्यवस्था अच्छी चल रही थी पूरी प्रजा राजा से खुश थी किसी को कोई तकलीफ नहीं थी देवीपुरम राज्य की राजा अपने राजा से बड़ा प्रेम करती थी पूरे राज्य में किसी को कोई दुख तकलीफ होती तो राजा पूरी मदद करता था।
विश्वनाथ को धन दौलत की कमी नहीं थी ना ही उसकी पत्नी को कोई परेशानी थी ना उसके बच्चों को कोई परेशानी थी लेकिन राजा का मन ठीक नहीं था सब कुछ होते हुए भी वह हमेशा बेचैन रहता था विश्वनाथ के मन को शांति नहीं थी वह हमेशा सोच विचार में पड़ा रहता था।
विश्वनाथ बहुत सारे धार्मिक तीर्थ स्थानों पर गया जगह जगह उसने पूजा अर्चना की बहुत से राज्य घुमा लेकिन फिर भी उसको अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले बहुत सारे पंडितों से मिला पुजारियों से मिला लेकिन कोई हल नहीं हुआ
विश्वनाथ थक गया था सब कुछ करते करते।
फिर एक दिन विश्वनाथ अपने ही राज्य के एक गांव में गया गांव में एक मशहूर कबीला था
कबीले वालों ने राजा का स्वागत किया खाना खिलाया अपने कबीले के बारे में जानकारी दी
गांव में घूमते घूमते कबीले वाले राजा को अपने गांव के मंदिर में ले गए मंदिर में गांव के देवता की बड़ी सुंदर मूर्ति थी।
राजा विश्वनाथ देवता की मूर्ति को देखता ही रह गया विश्वनाथ मूर्ति को देख कर बड़ा खुश हुआ
विश्वनाथ के चेहरे पर मानो एक अलग ही नूर आ गया विश्वनाथ ने कहा मैं गली-गली गांव-गांव गया कई धार्मिक तीर्थ स्थानों पर गया लेकिन जो शांति मेरे मन को यहां आकर मिली वो शांति मुझे कहीं नहीं मिली राजा विश्वनाथ की आंखों में आंसू आ गए और वो भावुक हो गया उसने हाथ जोड़े गांव वालों की तरफ देखा।
राजा विश्वनाथ ने कहा कृपया मुझे इन देवता की मूर्ति को अपने महल ले जाने दीजिए मैं इन देवता जी की पूजा अर्चना करूंगा कबीले वाले कहते हैं आप हमारे राजा हो आप जो चाहें मांग सकते हों चाहे तो हमारी जान मांग लीजिए लेकिन हमारे देवता जी को लेकर जाने की इच्छा हमारे सामने मत रखिए।
राजा भावुक होकर बोलता है कृपया मुझे इन्हें ले जाने दीजिए कबीले वाले हाथ जोड़कर खड़े थे बहुत देर बात करने के बाद वह देवता उस मंदिर के पुजारी में आ गए देवता नृत्य करने लगे और बोले मैं इस कबीले का देवता हूं इन को छोड़कर मैं नहीं जाऊंगा राजा उनके आगे भी हाथ जोड़कर झुक गया और बोला कृपया चलिए मेरे साथ आप जो मांगोगे मैं दूंगा।
विश्वनाथ के बहुत प्रार्थना करने पर कबीले के देवता विश्वनाथ के साथ चलने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन वह कहते हैं मेरी एक शर्त है मैं तभी तुम्हारे साथ चलूंगा अगर तू इस कबीले वालों का पूरा ध्यान रखेगा इनके घर इनकी खेती के लिए तू इनको जमीन देगा इनके
सुख-दुख में इनके साथ खड़ा होगा।
तेरी या तेरी आने वाली पीढ़ी की तरफ से अगर इस कबीले वालों को कोई भी तकलीफ आई तो मैं तेरा साथ छोड़ दूंगा और तुझे बर्बाद कर दूंगा
मैं इस कबीले का देवता हूं इस गांव का देवता हूं
इनको छोड़कर मैं तेरे साथ जा रहूं मैं हमेशा इनके साथ खड़ा हूं।
विश्वनाथ उन देवता की मूर्ति को बड़ीश्रद्धा से अपने महल ले आता है वो बड़ी धूम-धाम से मूर्ति थी स्थापना अपने महल में करवाता है
विश्वनाथ बड़ा खुश होता है उसके परिवार में खुशियां आती हैं धन दौलत की कोई कमी नहीं होती पूरा परिवार खुश रहता है विश्वनाथ का राज्य बढ़ता रहता है पूरी उन्नति और तरक्की पर होता है उसने गांव वालों को कबीले वालों को कभी कोई कमी नहीं आने दी ना ही कोई तकलीफ दी कबीले वाले भी खुश थे राजा से।
विश्वनाथ की पहली दूसरी और तीसरी पीढ़ी ने उन देवता की सेवा की और गांव वालों को कोई तकलीफ नहीं दी सब कुछ सही चल रहा था
फिर एक दिन चौथी पीढ़ी के राजा का बेटा इन सब चीजों को अंधविश्वास मानकर उसके पुरखों द्वारा दी गई जमीन को कबीले और गांव वालों से वापिस लेने की इच्छा रखता है।
चौथी पीढ़ी के राजा का बेटा मतलबी हो गया था उसके पिता के समझाने पर भी वह नहीं माना और गांव वालों को भला बुरा बोलने लगा
वो जबरदस्ती गांव वालों को जमीन के कागज ला ने के लिए बोलने लगा तभी वहा पर खड़े पुजारी जी में वह देवता आते है और नृत्य करने लगते हैं राजा का बेटा इसे अंध विश्वास बोलकर बहस करने लगता है।
देवता कहते हैं तू करले जो करना है अगर तेरी वजह से किसी भी कबीले वाले को कोई नुकसान या तकलीफ हुइ तो तू मरे गा
राजा का बेटा यह सब नहीं मानता और अगले दिन गांव वालो के जमीन के कागज मंगवाता है।
भरी सभा में राजा के बेटा को दिल का दौरा पड़ जाता है और वो वही मर जाता है।
तभी एक बार फिर पुजारी में देवता जी आते हैं और कहते हैं देखा तुम सब ने जो भी तुम्हारे साथ बुरा करेगा तुम्हें तकलीफ देगा उसका में यही हाल करूंगा यह बात मैंने इसके पूर्वजों को भी बोली थी देवता जी नृत्य करके पुजारी जी के शरीर से चले जाते हैं।
उसी राजा का एक बेटा होता है वो भी यह सब देख रहा होता है उसका नाम रघुनाथ है वो मन में सोचता है कि वो बड़ा होकर वो अपने पिता की मौत का बदला लेगा रघुनाथ की राजा की गद्दी मिलती है।
गद्दी मिलने के बाद रघुनाथ गांव वालों का भरोसा जीतता है कोई भी त्योहार आता राजा गांव वालों को धन दौलत देना खाने पीने की वस्तुएं देता किसी को कोई बीमारी होती तो रघुनाथ उनका इलाज करवाता।
रघुनाथ गांव के गरीब घर के बच्चों की शादियां करवाता गांव के लोगो के घर जब किसी की मृत्यु हो जाती तो वो उनके घर जाता दुख बाटने
वो यह सब करके एक साजिश रच रहा था उसका सोचना यह था की गांव कबीले वालों का भरोसा जीत कर इनकी जमीन हड़प लूंगा।
जिस तरह देवीपुरम राज्य के राजाओं की पीढ़ियां चली आ रही थी वैसे ही कबीले वाले देवता जी की पूजा अर्चना करने वाले पुजारियों की भी पीढ़ियां चली आ रही थी जिस समय रघुनाथ राजा था उस समय शंभू पुजारी था
रघुनाथ ने शंभू को पूरी तरह से यह भरोसा दिला रखा था कि वह कबीले वालों के साथ है हमेशा उनके सुख-दुख में उनके साथ है।
कुछ सालों बाद गांव वालों का विश्वास जीतने के बाद रघुनाथ ने अपने पुरखों द्वारा गांव वालों को दी गई जमीन वापस लेने की सोची शंभू पुजारी जी में कबीले के देवता आते थे उन्हें यह बात पता चल गई उन्होंने रघुनाथ को समझाया कि ऐसा मत करो तुम बर्बाद हो जाओगे मारे जाओगे लेकिन रघुनाथ को लगा इतने सालों से तुम लोग हमारे पुरखों को बेवकूफ बनाते आए हो मैं तुम्हारे झांसे में नहीं आऊंगा।
रघुनाथ शंभू पुजारी को मरवा देता है उसे लगा अब तो पुजारी मर गया है अब तो कोई देवता के नाम पर बेवकूफ नहीं बनाएगा जिसमें देवता की आत्मा थी वह तो अब मर गया अब मैं जो चाहे कर सकता हूं।
रघुनाथ सारे गांव के कबीले वालों से उनकी जमीन के नए कागज बनवाने के नाम पर सारे पुराने कागज मंगवा लेता है और अपना असली चेहरा दिखाता है गांव वाले रघुनाथ को कहते हैं तुम्हारे पुरखों ने हमारे देवता के कहने पर यह जमीन हमें दिलाई थी तुम ऐसे हमें बेघर नहीं कर सकते रघुनाथ गांव वालों की एक नहीं सुनता और गांव वालों को बंदी बना लेता है।
रघुनाथ पूरे कबीले में आग लगा देता है वहीं पर गाय भैंस होती है उन्हें जला देता है बच्चे बूढ़े होते हैं और वो वहां आग लगवा देता है गांव वालों के शोर मचाने पर वह अपने सैनिकों से गांव वालों को मरवाने लगता है
तभी एक कबीले वाले में देवता आते हैं वह पूरे गुस्से में नृत्य करते हैं रघुनाथ कहता है यह बेवकूफ बना रहा है इसको मारो जो कोई भी देवता जी पर हमला करने जाता वह खुद ही मर जाता रघुनाथ खुद हथियार लेकर देवता जी को मारने जाता है देवता जी उसी हथियार को रघुनाथ के गले में मार कर मार देते हैं।
देवता जी कहते हैं मैंने तुम्हारे पुरखों को कहा था की कबीले वालों को तुमसे या तुम्हारी आने वाली पीढ़ियों से कभी कोई तकलीफ हुई तो मैं उन्हें छोडूंगा नहीं खतम कर दूंगा।
रघुनाथ का एक बेटा होता है फिर वह गांव के कबीले वालों से कहता है कृपया हमें माफ करें मैं अब इस राज्य का राजा बनूंगा और किसी को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा यह जमीन आप की थी और आपकी रहेगी मैं अपने पुरखों के वचन को निभाऊंगा।
तो यह थी कहानी सब कुछ ठीक हो गया रघुनाथ का बेटा राजा बन गया और वह गांव वालों की सेवा करने लगा सभी को रघुनाथ का बेटा राजा के रूप में बड़ा अच्छा लगा।